
दोस्तों, दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल पूरी दुनिया में भारत का सबसे मशहूर Tourist Place है, लेकिन बीते कुछ दिनों से लगातार ताजमहल के अस्तित्व को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। इतिहास में तो यही दर्ज है कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने करवाया था, लेकिन अब देश का एक पक्ष इसे शिव मंदिर तेजो महालय बताने में लगा है। इसी मामले को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई ताकि ये मालूम चल सके कि क्या सच में ताजमहल मुमताज की याद में बना मकबरा है या फिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र तेजोमहालय। इसी विवाद के बीच जयपुर राजकुमारी दीया कुमारी ने भी दावा किया कि ताजमहल उनकी जमीन पर बना हुआ है और इसके पेपर भी वो दिखाने के लिए तैयार हैं। अब ऐसे में ताजमहल को लेकर कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, जिसमें सबसे पहला प्रश्न, ताजमहल के अस्तित्व को लेकर है कि क्या ताजमहल ही वास्तव में तेजो महालय है??? दूसरा, अगर राजकुमारी का दावा कोर्ट में सही साबित होता है तो क्या ताजमहल को गिरा दिया जाएगा या फिर राजकुमारी को वापस लौटा दिया जाएगा?
मोहब्बत की निशानी बताए जाने वाले इस ताजमहल को लेकर बचपन से हम किताबों में यही पढ़ते आ रहे हैं कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से इस मकबरे को बनवाया था। कहा तो ये भी जाता है कि मुमताज़ ने मरते वक्त अपना भव्य मकबरा बनाए जाने की ख्वाहिश जताई थी जिसके बाद शाहजहां ने ताजमहल बनावाया था। दोस्तों, ताजमहल जितना खूबसूरत है, उतने ही विवाद भी इसके साए में पड़े रहे हैं। 1666 में शाहजहां तो मर गया, मगर विवाद जिंदा रहा। समय समय पर लोगों ने यह आवाजें उठाई कि ताजमहल कोई मोहब्बत की निशानी नहीं बल्कि शिव मंदिर तेजोमहालय है लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है यह अब तक सामने नहीं आ सका।
दोस्तों आइए, मिलकर इस पूरी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते हैं, जो भी विवाद इस समय उठ रहा है उसे हम मिलकर उसकी तह तक पहुंचते हैं।
वैसे बता दें, ताजमहल को लेकर साल 2015 में भी एक विवाद सामने आया था जब 6 वकीलों ने आगरा कोर्ट में एक याचिका डाल अपील की थी कि उन्हें ताजमहल में पूजा की अनुमति मिले और वहां हो रही मुस्लिमों की नमाज पर रोक लगे।
इन वकीलों का तर्क था कि ताजमहल असल में तेजोमहालय है और शाहजहां ने इसे राजा जय सिंह से हड़प लिया था। लेकिन Bar&Bench की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में केंद्र ने ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर इन तमाम दावों को मनगढ़ंत और स्वयं निर्मित बता दिया था। उनकी नजरों में ऐसा कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास था। तब सरकार ने भी कोर्ट में ये माना था कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था।
बाद में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ASI जो भारत के पुरातात्विक इमारतों की देखभाल करते हैं उन्होंने भी आगरा कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था। जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि ताजमहल एक मकबरा है, मंदिर नहीं।
ताजमहल को तेजो महालय बताने वाले लोगों का ऐसा कहना है कि आख़िर एक कब्रगाह को, एक मकबरे को महल क्यों कहा गया है? क्या कभी किसी ने इस पर सोचा है, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया था। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया और यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। वैसे दोस्तो बता दें, उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि किसी में भी ‘ताजमहल’ शब्द का उल्लेख नहीं है।
वैसे दोस्तों आपको बता दें, ताजमहल को लेकर विवाद की शुरूआत इतिहासकार पीएन ओक की किताब ‘ट्रू स्टोरी ऑफ ताज’ के सामने आने के बाद शुरू हुआ था। अपनी इस किताब में ओक ने यह साफतौर पर लिखा हुआ है कि शाहजहां ने अपनी लूट की दौलत को ताजमहल में छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां ने चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता कराया होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
ओक आगे लिखते हैं कि शहंशाह के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। क्योंकि जिस जनानखाने में हजारों सुंदर स्त्रियां हों उसमें भला प्रत्येक स्त्री की मृत्यु का हिसाब कैसे रखा जाए। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक भी निवास नहीं बनवाया वह उसके मरने के बाद भव्य महल बनवाएगा?
‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके नाम के बाद महल लगाया गया हो। यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि शाहजहां की बेगम का नाम था मुमता-उल-जमानी। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा गया होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
ओक का यह स्पष्ट कहना है कि ताजमहल एक शिव मंदिर या राजपूताना महल था, जिसे शाहजहां ने कब्जा कर मकबरे में बदल दिया। ओक ने अपनी किताब में यह भी दावा किया है कि ताजमहल पर कब्जा करने के बाद शाहजहां ने ताजमहल से हिंदू अलंकरण और चिन्ह हटा दिए और जहां नहीं हटा पाए उन्हें बंद कर दिया। ओक के मुताबिक, जिन कमरों में उन वस्तुओं और मूल मंदिर के शिवलिंग को छुपाया गया है, उन्हें सील कर दिया गया है।
आपकों बता दें, जिन कमरों की बात यहां हो रही है वे कमरे ताजमहल के मकबरे और चमेली फर्श के नीचे बने हुए हैं। इन कमरों में से कुछ को मरम्मत के लिए साल 2015 में गोपनीय रूप से खोले जाने की बात भी सामने आई थी। जिस पर विवाद भी हुआ था मगर यह कमरे कभी भी सार्वजनिक रूप से नहीं खोले गए। ताजमहल में ऐसे 22 कमरे है जो दशकों से बंद पड़े है।
ताजमहल के इन्हीं बंद कमरों को खोलने की याचिका हाल ही में कुछ दिनो पहले भाजपा कार्यकर्ता अयोध्या के डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की थी। ताकि ताजमहल के अंदर बंद उन 22 कमरों से पर्दा उठ सके। लोगों का मानना है कि इन कमरों को खोलकर अगर निष्पक्ष जांच होती है तो कई चौंकाने वाला रहस्य बाहर निकल कर आएंगे। याचिकाकर्ता के दावे के अनुसार ताजमहल एक शिव मंदिर है और ताजमहल के उन 22 बंद कमरों में ताजमहल के तेजो महालय होने के ढेर सारे सबूत मिल सकते हैं। यहां तक कि याचिकाकर्ता ने ये भी आशंका जताई है कि उन कमरों में हिंदू देवी देवताओं की कई सारी मूर्तियां मौजूद हो सकती है।
डॉ. रजनीश सिंह के अनुसार इन्हीं छुपी हुई मूर्तियों की वजह से इन कमरों को हमेशा बंद रखा जाता है ताकि तेजो महालय की सच्चाई सामने न आ सके, और दुनिया इसे ताज महल ही मानती रहे!
दोस्तों, ताजमहल की इन्हीं विवादों के बीच जयपुर राजघराने की राजकुमारी और बीजेपी सांसद दीया कुमारी ने भी दावा कर दिया कि ताजमहल उनकी जमीन पर बना हुआ है और इसके पेपर भी वो दिखाने के लिए तैयार हो गई। दीया कुमारी के इस दावे के सामने आने के बाद चर्चाओं का बाजार और गर्म हो गया। हालांकि ताजमहल को लेकर ये विवाद नया नहीं है। इससे पहले हिंदू संगठन दावा करते रहे हैं कि ताजमहल से पहले यहां शिव मंदिर था जिसे ‘तेजो महालय’ नाम से जाना जाता था।
बता दें, साल 2017 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी यह साफ कहा था कि हम ताजमहल के असली दस्तावेजों तक पहुंच गए हैं। हमारे पास इस बात का प्रमाण है कि शाहजहां ने जयपुर के राजा महाराजाओं पर दबाव डालकर ताजमहल की जमीन को बेचने के लिए मजबूर किया था। शाहजहां ने जबरन ताजमहल की जमीन को कब्जे में लिया था और जयपुर के राजाओं को हर्जाने के रूप में महज़ चालीस गांव दिए थें जो कि ताजमहल की जमीन के सामने कुछ भी नहीं है।
इतना सब होने के बाद भी…. इतनी आवाज उठने के बाद भी… इलाहबाद हाई कोर्ट ने ताज महल के इन कमरों को खुलवाने और सर्वे कराने की याचिका को सीधे तौर पर खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं, हाई कोर्ट ने इस मामले पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आप ताज महल के कमरों को खुलवाने वाले कौन होते हैं। अदालत ने ये भी कहा कि…अगर कल हो कि आप जज के चैंबर में जाने और उसके अंदर क्या है…का पता लगाने के लिए याचिका दायर करते हैं तो क्या आपको इसकी इजाजत दी जाएगी? अदालत ने जनहित याचिका की व्यवस्था का दुरुपयोग न करने की भी बात भी कही गई।
दोस्तों, इतिहास में हमे पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू हुआ था और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था। अब आप सोचिए जरा कि जब मुमताज की मृत्यु 1631 में हुई तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था।
दोस्तों, इन सारे विवादों के बीच इतिहासकार राणा सफवी के कही गई बातें भी काफी तेजी से वायरल हुई है। राणा सफवी का कहना है कि आज तक ताजमहल में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले कि जो यह बात साबित करें कि वहां पर पहले मंदिर हुआ करता था।। साथ में राणा सफवी ने यह भी स्पष्ट कहा कि ताजमहल की जगह पर मंदिर ना होकर असल में वहां राजा जयसिंह की हवेली हुआ करती थी। शाहजहां ने राजा जयसिंह से उनकी इस हवेली को खरीदा है। शाहजहां ने राजा को ताजमहल के बदले में चालीस गांव दिए थें जिसका फरमान आज भी सिटी पैलेस संग्रहालय में कपड़ द्वार संग्रह में बंद है।
दोस्तों जितने तरह के लोग हैं उतने ही तरह की उनकी बातें और उतने ही दावे हैं। जब इतनी सारी आवाजें उठ रही हैं तो क्या हमारे सरकार का यह फर्ज नहीं बनता कि वह जानकारियों को लोगों के सामने लाएं। अगर यही रवैया रहा तो क्या ताजमहल से कभी पर्दा उठ पाएगा! क्या लोगों को अपना जवाब मिल पाएगा! क्या ताजमहल ही कभी तेजो महालय था, इस बात की सच्चाई कभी सामने आ पाएगी यह बहुत बड़ा प्रश्न है।
अगर ताजमहल सिर्फ एक मकबरा है तो फिर क्यों सरकार डर रही है इन जानकारियों को सामने लाने में! क्यों नहीं, ताजमहल के बंद कमरों से पर्दा उठाया जा रहा है। क्या यह कोई षडयंत्र है? या वाकई में यह सच है कि ताजमहल ही असल में तेजो महालय शिव मंदिर था जिसे तोड़कर ताजमहल को बनाया गया। इस राज से पर्दा कब उठेगा यह कोई नहीं कह सकता हम बस उम्मीद कर सकते हैं और खुद को यकीन दिला सकते हैं कि एक दिन वो जरूर आएगा जब ताजमहल के राज से पर्दा उठेगा।